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________________ ॥ ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ ठक्कुर - फेरू - विरचित गणित सार 1888+++ [ प्रथमोऽध्यायः ।] नमिऊण तिजय नाहं लच्छीस - गिरीस सयल - देवज्जं । लेहाण गणणपाडी पुव्वायरिएहि जह वृत्ता ॥ १ तत्तो व (१ वि) किंचि गहियं किंचि वि अणुभूय किंचि सुणिऊणं । तं सयललोय हेऊ फेरू पभणेइ चंदसुओ ॥ २ पडिकाइणि तह काइणि पडिविस्संसा तहेव विस्संसा । जावय होंति विसोवा वीस उण कमेण नायव्वा ॥ ३ वीसि विसोइहि दम्मोदम्मिहि पंचासि टंकओ इक्को । वीस कम दीह वित्थरि अह कंवी सट्ठि वीगहओ ॥ ४ पव्वंगुलि चडवीसिहि बत्तीस करंगुली य विनेया । अट्ठ जवि तिरियगेहं पव्वंगुलु इक्कु जाणेह ॥ ५ चवीसंगुल हत्थो पंडिय चहुं हत्थि हवइ डंडु इगो । बिहुसह सिदंडि कोसो चहुँको सहि जोयणो इक्को ॥ ६ इय भणियं सरहत्थं विक्खंभायाम गुणिय पडहत्थं । वित्थारहु उदय गुणं तं घण अत्थं वियाणाहि ॥ ७ चहुँ करपुडेहि पाई चहुँ पाई एगु माणओ भणिओ । चहुँ माणेहि वि सेई सोलस सेई भवे पत्थो ॥ ८ छहिँ गुंजि मासओ हुइ तेहि वि चहु टंकु टंकि दसहि पलो । छहि पलिहि इक्कु सेरो सेरिहि चालीसि इक मणो ॥ ९ : ६ Jain Educationa International " For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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