________________
war ro rur,
रत्नपरीक्षादि ग्रन्थ संग्रह-किंचित् प्रासंगिक १ पत्रांक १ से १८ तक में ज्योतिषसार २ ,, - १९ से २७ A , द्रव्यपरीक्षा ३ , २८ से ३५
वास्तुसार ३६ से ४१ A . रत्नपरीक्षा ४१ A से ४३ A
धातूत्पत्ति ६ , ४३ B से ४४
युगप्रधान चतुष्पदी ७. ४५ से ६०
गणितसार हम ने इस संग्रह में प्रतिस्थित ग्रन्थक्रम का अनुसरण न करते हुए, प्रथम रत्नपरीक्षा, द्रव्यपरीक्षा और धातूत्पत्ति नामक इन ३ रचनाओं को एक साथ रखा है, और फिर ज्योतिषसार, गणितसार एवं वास्तुसार इन ३ रचनाओं को एक साथ रख कर, अन्त में 'युग प्रधान चतुष्पदी' रचना को दे दिया है । इस से विषय का विभाजन ठीक संगत हो गया है।
- इसके साथ मूल प्राचीन प्रति जो कलकत्ते के जैन भंडार में प्राप्त हुई उसके कुछ पन्नोंके ब्लाक भी बना कर दिये जा रहे हैं जिस से पाठकों को प्रति की प्रतिकृति का दर्शन हो सके।
ज्योतिष, गणित, वास्तुशास्त्र, रत्नशास्त्र और मुद्राविषयक विज्ञान पर, इस प्रकार की विशिष्ट ग्रन्थ-रचना करने वाला ठकुर फेरू, सचमुच अपने समय का एक बहुत ही बहुश्रुत विद्वान् और अनुभवी शास्त्रज्ञ था। उसकी ये कृतियां हमारे प्राचीन साहित्य की बहुमूल्य निधि हैं और इस प्रकार राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान द्वारा इन का प्रकाशित होना सर्वथा समादरणीय होगा।
)
चैत्र शुक्ल १३, वि. सं. २०१७ दिनांक-३१, मार्च, १९६१ भारतीय विद्या भवन, वंबई.
- मुनि जिन विजय
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org