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________________ तृतीय गणितपद द्वार रवि अंगुल संकस्स य विसव च्छायाइ तं च मेस-तुले। अयणं सूणदिणेहिं जहिच्छट्ठाणस्स नायव्वं ॥ ३ ॥इति विषवच्छाया ॥ एगूणं सैह्रसयं पंणेसहि दंसेहि विसवच्छायहयं । सोलह वसु रौम फलं सदेसचरखंडियपलाइं ॥ ४ . ॥ चरखंडिकानयनम् ॥ वसु-रिक्स नंद-नैव-कर ति - देसैण तिय -देते नंद-गुणतीसं । वैहुँ - रिक्खं चरखंडिय कमुक्कमे रिणधणं कुज्जा ॥ ५ मेसाइ कमि उवक्कमि इच्छियठाणस्स लग्गपलसंखा । भणियं च अओ वुच्छं तकालिय जं फुडं लग्गं ॥ ६ ॥ लग्नानयनम् ॥ स्थापना लिख्यतेढीली जोजन ७४/ आसी जोजन ८१ / लग्नप्रमाणं पलसंख्या। विषवच्छाय अंगुल विषम च्छाया अंगुल अंगु ६ ढीली सं० आसी सं० प्र.३० मेषु २१४ २१२ मीनु चरखंडिक चरखंडिका वृषु २४७ २४५ कुंभ मिथु ३०१ ३०१ मकर ५२ कर्कु ३४५ ३४५ धनु २२ सिंघु ३५१ | ३५३ वृश्चि परमदिनं परमदिनं कन्या ३४२ / ३४४ तुल घ०३४ घ० ३४ प० ३६ | प०४४ धण-मिहुणगए सूरे जित्तिय भोयंसि फिरइ संकपहा । तित्तिय अयणंस धुवं अनि पवाहिय इमं जाण ॥ ७ पण-ख - रुद्रूणे सागं सट्ठिफलं रुदसहियं अयणंसा। ते सूरे दायव्वा लग्गे कंती चराणयणे ॥ ८ ॥ इत्ययनांशः॥ लंकोदयलग्नमान - - - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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