SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . ठकुरफेरूविरचित ज्योतिषसार मूल मिय सवण हत्थे पुस्सु पुणव्वसु कुज - ऽक्क -गुरुवारे । घणपक्खि सुद्धदियहे सीमंतयउन्नयं कुजा ॥ ५५ ॥सीमंतोन्नयनम् ॥ सवणाइ तिन्नि हत्थं रेवइ अणुराह साइ अस्सिणिया । पुस्सु पुणव्वसुऽभीई ति-उत्तरा सुहदिणे चंदे ॥ ५६ नामक[र]ण - ऽन्नपासण नयणंजण जायकम्म वयबंधं । सिप्पाइ चूडकरणं तणुभूसणमाइ कायव्वं ॥ ५७ ॥ इति नामकरण - अन्नप्रासन - चूडाकरणं च ॥ कर सवण चित्त रेवइ रोहिणि अणुराह पुस्सु जिट्ठा य । अस्सिणि पुणव्वसे वि य करिज सिसुकन्नवेह सुहा ॥ ५८ पुस्सु पुणव्वसु रोहिणि ति - उत्तरेहिं कुसुंभवत्थाई । जत्तेण परिहरिजहु जइ वंछहु सुपइसोहग्गं ॥ ५९ ॥ इति कुसुंभवस्त्रे निषेधः॥ रोहिणि पमुहाईणं अंधय काणं च चिप्पडं अमलं । सयलहसुद्धिसुन्नं गयवत्थ कमेण उवएसं ॥ ६० ॥ इति श्री चन्द्राङ्गज- ठक्कुरफेरू-विरचिते ज्योतिषसारे व्यवहारद्वारं द्वितीयं समाप्तम् ॥ २॥ <>*[ तृतीयं गणितपदद्वारम् ।] उज्जेणि दाहिणुत्तर जत्थ ठिए सुहमु कीरए लग्गो । तत्थंतरस्स जोयण पंच उण रसेहिं जं पत्तं ॥ १ बि-सैय छ उत्तर पिंडे हीणज्जुयं दाहिणुत्तरे कमसो । ससि-वेय भाइ लद्धं अंगुल - पडिअंगुलं जं च ॥२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy