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द्वितीय व्यवहार द्वार [द्वितीयं व्यवहारद्वारम् ]
सणि तीस गुरू तेरह अट्ठारस राहु दिवढ मासु कुजो । बुह-सिय-रवेगु मासो सिवा दु दिण चंदु रासिठिई ॥१ खडु सय सट्ठ छतीसौं तिन्नि बहत्तर दु-एग-वनासी । तिन्नि वैयोलं गारय(ह) आइ कमे उदयदिणसंखा ॥ २ सुन्न-रवि सोल दसणी नंद वयालीसें पच्छिमत्थ दिणा । भूमाई तह पुव्वे बुह सिय बत्तीस सगँसयरी ॥ ३ - पणसँटि एगैवीसं वारेसअहियं सयं च बावन्ना । चउँतीस सयं दियहा वक्कगया मंगलाइ कमे ॥ ४ ... ॥ इति ग्रहाणां राशि-स्थिति-उदया-ऽस्त-वक्रदिनसंक्षा(ख्या)॥ रवि तिय छट्ठो दसमो चंदो तिय सत्त छ इग दसमो य । सियपक्खि दु पण नवमो गुरु पंचम दु नव सत्तमओ ॥ ५ बुहु दु चउ खड दहट्ठो कुजु सणि ति छ भिगु छ सत्त दसरहिओ। राहू तिय दस छट्ठो गोयरि सवि गारहा सुहया ॥ ६ रवि मंगलु पविसंता चंदु सणी निस्सरंत गुरु अंते । मज्झगया बुह सुक्का सुह-असुह फलं पयच्छति ॥ ७ बुहु विज्जा-गमणि सिओ सणि दिक्खा गुरु विवाहि जुद्धि कुजो । निवदंसणंमि सूरो सव्वसुकज्जे बली चंदो ॥ ८ नव सत्त पंच बीओ दिवायरोऽ सुरगुरू य ति छ दहमो। एए जहुत्तपूइय हवंति सुपसन्न वीवाहे ॥ ९
॥ इति जन्मराशितो ग्रहाणां गोचरः ॥ गहणे रासीओ जानिय रासी ति चउ अट्ठ गार सुहा । पण नव दहं-ऽत मज्झिम, छ सत्त इग दुन्नि अइअहमा ॥ १०
॥ इति ग्रहणराशिफलम् ॥
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