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________________ बहुल इगारसि फग्गुण मासे, रविवासरि आणंदि उल्हासे, उच्छरंगु उच्छलिउ जणि । सुगुरु मुणीसरसूरि सुविसाले, खीमचंद - संघाहिव-भाले, तिलकु कियउ तेयग्गलिहि ॥११॥ वाजई करडि पडह कंसाला, गहिर सरिहि झुणि गीय झमाल, भट्ट भणइ छप्पय सरस । संघ पूज अइ वित्थर करए, दाणिहि मागण रोरु अवहरए, कप्पड़-कणय-कवाइ घणि ॥१२॥ सदरथ जीमणवार विसाल, सुपरि सयल मुणिवर संभाल, खीमसिरि रहसागलीय । लक्खी कप्पूरो वि सुयासणि, आसीसंति हरखि सोवासिणि, खीमचंद थिरु होह धर ॥१३।। भंडाणइ भत्तह भयहरणी, वडकुलदेवि सेवि वर वरिणी, तासु सेस सीसिहि धरवि । अह फलवधिपुरि पासु पसंसिउ, रूण संति आसोप नमंसिउ, उवएसिहि वधमाणु नमि ।।१४॥ मंडोवरि पणमिय पय पास, वीरु महेवइ पूरइ आस, राडदहि नमि वीरु जिण । साचउरिहिं संपत्तउ संधो, वोरु नमी किउ पाय उलंघो, न्हवण विलेवण पूज करे ॥१५।। जिणहरि उच्छव वार सवार, रंगि पत नाचइ किरि अपछर, न्हवउ वीरु घिय कलसभरे । सधणु वरइ माला ऊघट्ट, कव्व कवित्त भणइ बहु भट्ट, जीरावलिणि (?) ऊमहिय ॥१६॥ १३० ] Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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