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सरवण - कुलि साधारू ए सिंघराज - नंदनु सबलो। संसारचंदु उदारू ए संघभार हुअ धुरि धवलो ।।१४।। चहु दिसि संघु अपारू ए मिलियउ संख न जाणियइ । जिण सासणि जयकारू ऐ सयल लोय वक्खाणियइ ॥१॥
|घात ।।
वंसि नाहर वंसि नाहर सगुणु संघपत्ति नयणागरि उच्चउ करवि मेलि संघ बह देसि हतउ खेमा गुडर ताणि करे सयल - लोय - मनि वचनि वसबउ वइसाखह सुदि दसमि दिणि महियलि महिमावंतु तिलकु लियउ संघाहिवइ कोडि जुग्म जयवंतु ॥१६॥
चतुर्थ भाषा सयलु संघो तह चालियओ, माल्हंतडे, मानवनइ कइ तीरि । विषम धाटी उल्लंघि करे, सुणि सुंदरि, पहुतु पहाडिय-नयरि ॥१॥ संघु दिगंतर चालियउ, माल्हंतडे, कामइधगढ़ि संपत्तु । सहारपुरिहि सघु गहगहिउ, सुणि सुदरि, मथुरपुरीहिं पहुत्तु ॥२॥ दूरिहिं नयणिहिं पेखियओ, सुणि सुदरि, विहु जिणथूभु पवित्त । यमुनातीरि अवासियउ संघु, सुंदरि मोहिल-तणउ सुपुत्तु ॥३॥ तरल-तरंगिहि रंजियउ, माल्हतडे, गूजरि-तण उ भतारु । जिणवर-बिंब पयासई ए, सुणि सुदरि सीहो मलिकु उदारु ॥४॥ फलनालियरिहि भेटि करे, माल्हंतडे, चरचई फूलि कपूरि । मणह मणोरह पूरिस ए, माल्हंतडे पापु पणासिय दूरि ।।५।। न्हवण विलेपण पूज धज, माल्हंतडे, पास सुपास जिणिद । वीर जिणेसर पूजियउ, माल्हंतडे, नयणागर आणंदु ॥६॥
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