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उत्सवु करइ बहुतू ए विक्कम चउद गुणासियइ । मासि वसंत वइसाखी ए भृगुवासरि तिथि दसमीए ॥२॥ सासणदेवि-पसाए संति पुष्टि करि विधिसहिय । मंगल गायहिं नारी ए अयहव सूहव गहगहिय ।।३।। पंच सबद विसथारी ए वादित्र वाजई महरसरे। चतुर - नगर - नर - नारी ए संघपति - जयजयकारु करे ॥४॥ संघविणि अनु संघपत्ति ए संधु चतुविधु मेलि करे। सुह लगनिहि सुमुहुत्तोए तिलकु कियउ मुनीसरसुरे ।।५।। धनु धनु जंपइ राया ए संघपति अतिहि सुहावणउ । जेल्ही दियइ असीसा ऐ चंभी लीयइ भामणउ ॥६॥ जेमणवार विसाला ए संघपति नयणइ सुपरि किय। लोय भणइ जयकारू ए गूजरिवरि जगि सुजसु लिय ॥७॥ कप्पड़ कणय कवाई ए नालकेरि संघ-पूज करे। मग्गणजण आणंदी ए नयणइ संघपति निघट नरे ।।८।। संघाहिविइ सुमुहुत्ती ए चारि महाधर थापियइ । केल्हू अति गुणवंतू ए भोजा-नंदणु जंपियइ ॥९।। दूगड-वंसि पसिद्धू ए मोहागर संघपति-तणउ । देवराजु पुनिवंतू ए धर्मकाजि महियलि थुणउ ।।१०।। झाझण-कुलह नरिंदू ए अरजुन-संभवु सधर नरो। सांगागरु जयवंतू ए वावेल गोत्र - पवित्र - करो॥११॥ सोनू सुयण - सधारू ए सिक्खा-नंदनु जाणियए। ए चारइ नरवीरा ए संघपतिकाजि वखाणियए ॥१२॥ संघपति करमा - कुमरह कालागर तह तिलकु कियउ ।
धाल्हा - कुल - नह - चंदू ए मूलराजु संघपति ठवियउ ।।१३।। १२४ ]
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