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________________ ३६. लक्ष्मी का निवास स्थान अपनी देह के वर्ण से प्रकाशमान कल्याण मयी शोभा वाला कल्याण रंग में गीयमान कल्याणचन्द्र सुशर्म कुल में प्रधान हुआ। ३७. कल्याणचन्द्र का. प्रभावशाली पुत्र कुलचन्द्र राजा समर्थ परोपकारी और ज्वालामुखी देवी के ध्यान में रत महान् था। ३८. रणक्षेत्र का रसिक, बुद्धि-ऋद्धि से समृद्ध, प्रसिद्ध, श्रेष्ठ गुण गणों का घर रूप लावण्य की सुरेखा के समान, शत्रु बल चक्र को जीतनेवाला, पुण्य कार्य में अथक, विजय कलित चक्री रामचन्द्र कल्याणकारी सूर्य के समान हुआ। ३९. उसका पुत्र आसचन्द्र हुआ जो अमित शत्रुओं से अजेय, दान में कणं, पर नारी विरक्त, धर्म पुण्य ज्ञाता पुण्य से परिपूर्ण था। ४०. षट्दर्शन भक्त, शुद्ध कार्यों में संसक्त, भक्त जीवों में अनुरक्त, जिन शाला निर्माता, रूचिर-विशाल बुद्धि वाला, शत्रुवर्ग के लिए कृतान्त, विल्लदेवी का कान्त वसुधाचन्द्र राजा हुआ। ४१. पंचपुर के स्वामी वल्ह को जीतकर अधिक प्रतापी, आदित्य के घर से स्वर्णमय छत्र को लाया और उसे ज्वालामुखी के उत्तंग भवन में निश्चल आरोपित किया, जिसने आनन्दमय भावों की वृद्धि से यश को बढा कर स्थिर किया। ४२. प्रसिद्ध वसुधाचन्द्र का पुत्र, गुण का मन्दिर, पृथ्वी रूपी नारी का पति, लक्ष्मी का घर उदयचन्द्र है जो ज्वालामुखी द्वारा महान् किया गया। ४३. उसका पुत्र जयसिंहचन्द्र ने अपने प्रताप से शत्रु ओं को विदलित नाश कर दिया, कमला केलि का निवास और विविध भावों से विलास करने वाला हुआ। [ १०९.. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003821
Book TitleNagarkot Kangada Mahatirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherBansilal Kochar Shatvarshiki Abhinandan Samiti
Publication Year
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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