________________
संखिणि गावइ गीउ राग चित्तिणि चित्ति विचित्ति कव्व
भाविहि सुमणोहरु ।
भासइ गुण
सुंदरु ॥
तंडवु अइ
हत्थिणि हत्थह फेरु रइवि पउमिणि पंकज वर्याणि थयणि कामिय दुह
च्यारइ सुनारि रंगिहि कलिय निय गुणरस वित्थारु करि । सेवहिं नरिंद ससिराय गुरु निय विष्णाण भावु घरि ॥ ७९ ॥
॥ इतिश्री सुसम्मंपुरीय नृपति वण्णन छंदांसि समाप्तानि || शुभं ॥ छ ||
मंडई |
खंडइ ||
हिन्दी भावार्थ
,
१. जिसके हाथ में पुस्तक धारण किया हुआ है, कमल जंसे मुख वाली, हंसासन स्थित दिव्य भावमय सरस्वती निरन्तर कल्याण- मंगल वितरण करती है । पंडितों की वह जननी है और विद्वान पुरुषों को सरस काव्य कला प्रदान करती है। गंगाजल की भाँति पवित्र है सर्वदा सैकड़ों विद्वान लोगों द्वारा स्तुत्यमान है ।
२.
तेज का प्रसार और अन्धकार क्षय करने में सचेत, तेजस्वी और सर्वांग सुन्दर पीनस्तनी लक्ष्मीदेवी का सम्पर्क सौभाग्य रूप है । सेवकजनों के मार्ग को विमल और विजयी बनाने में जिसका नाम सारभूत ख्याति प्राप्त है वह सारंगपाणि वीर समस्त जीवों को नित्य सांसारिक सुख प्रतिपादित करे ।
३. जो देवेन्द्र-नरेन्द्रों से वन्दित चरणों वाली मयूर वाहिनी ( ? ) विश्व में आनंद को बढ़ाने वाली और असुरों के रहस्य को फैला देने वाली है । पूजा में संलग्न समस्त मनुष्यों के मनोरथ पूर्ण करने वाली है, वह ज्वालामुखी देवी वांछित फल - सुखों की पूर्ति करे ।
१०४ ]
Jain Educationa International
मुख
४. सिन्दूर रंजित लाल कुम्भस्थल युक्त उद्दण्ड- प्रबल शुण्डादण्ड और वलय द्वारा उज्ज्वल भावों का विस्तार कारी है
शुद्ध गीत विनोद
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org