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रूवइन्द रिउ दप्प विहंडणु दुत्थिय दीणह दालिदह खंडणु । पंडिय लोयह बुद्धि विवद्धणु छिह दरिसण पूयणि सुवियक्खणु ॥४९।।
सोवन मउ सिरि वीर जिणेसर काराविउ अणइ रूवेसरु । अत्थव्वय निय कित्ति रहाविय पुण्णविद्धि निय नयरिहि ठाविअ ॥५०॥
सव्व राय जसु चरण नमसहि कित्ति पूर कवियण सुपसंसहिं। जालमुही ज्झाणिहि अइ लीणउ तसु पसाई रिद्धिहि अक्खीणउं ॥५१॥
जालंधरु सव्वुवि भंजेविणु निय कितिहि विथार रएविणु । सुद्धज्झाण नारायण सुमिरणि सग्गि पत्तु इन्दह अद्धासणि ।।५२॥
सिरि रूवचंद नरिंद नंदणु तस्स पट्टि वयठउ। सिंगारचंदु महिंदु सोहइ रज्ज मग्गि पइठउ । अइ दुटु रिउगण जिणिवि समरिहि विजउ लहिवि पसिद्धओ। सिव झाणि रत्तउ गुणिहिमत्तउ चित्त निम्मल सिधओ॥५३॥ तसु अंग संभमु विप्प भत्तउ वैरि सिंन्न खयंकरो। सिरि मेहचंद नरिंद सुरिंद समवडि दुठ्ठ मिच्छ भयंकरो॥ नयरी हिमगिर्हि लोकु पालवि धम्म रं (गि) हि रत्तओ।
सिवपुरीय णाइकु देव संकरु पूयविय रण सत्तओ ।।५४॥ १०० ]
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