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________________ २४ ] | समयसुन्दर रासत्रय देवलोक थी चषि महाविदेह, उत्तम अवतार लहिस्यइ एह । साधु समीप सुणी धमसार, भाव सुं लेस्यइ संयम भार ||१८|| चारित्र पाली निरतीचार, पामस्यइ केवलन्यान प्रकार | आठ करम नउ करिस्यइ अंत, मुगति तणा फल ल हिस्यइ महंत १६ दान तणा फल परतखि देखउ, पुण्य पडूर सिंहलसुत पेखउ । साधु नइ सेलड़ि रस विहरायड, पदमिनी प्यार सहित सुख पायउ ||२०|| इम जाणी आणी उल्लास, साधु नइ दान देज्यो सुविलास । अविचल लहिस्यउ सुख अपार, कहइ समय सुंदर अधिकार ||२१|| [ सर्व गाथा २२३ ] ढाल (११) मदन मइ' वासउ माहव मांडियउ रे, एहनी राग धन्या सिरी दान सुपात्रइ श्रावक दीजियह रे, दानइ दउलति होइ । दीघांरा देवल चड रे, साच कहइ सहु कोइ ॥ १॥ दा० संवत सोल बहुत्तरि समइ रे, मेड़ता नगर मकारि । प्रियमेलक तीरथ चउपइ रे, कीधी दान अधिकार ||२|| दा० कचरउ भाबक कौतकी रे, जेसलमेरी जाण । चतुर जोड़ावी जिणए चउपई रे, मूल आग्रह मुलताण ||३|| दा० इण चउपइ ए विशेष छइ, सगवट सगली ठाम । बीजी चउपइ बहु देखज्यो रे, नहिं सगवट नुं नाम || ४ || दा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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