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[समयसुन्दर रास पंचक
पुण्य करउ भवि परगड़उ, परिहरि सब पाप । पुण्य प्रमाणइ देवता, आवइ घरि आप ॥२॥ ॥पु०॥ सुमति गुपति साते सही, पाली प्रवचन मात । सुख स्यं तिणि इणि ही सुखइ, परणी प्रमदा सात ॥३॥पु०॥ कष्टइ करि पाली काइकी, इम गुपति उदार । कष्टइ लाधी कामनी, सुणि सेठ विचार ॥४॥पु०॥ सुणि देसण संवेग थी, वारु मन वालि । सेठ पुरंदर सरलमति, दीख ग्रही दयाल ॥५॥पु०॥ श्रावक धर्म सूधउ ग्राउ, पुण्यसार प्रधान । अतीचार अलगा करी, पालइ पचखाण ॥६॥पु०॥ पुण्यसार वय पाछली, दुक्कर ल्यइ दीख । पुत्रादिक परिवार स्युं, सहु स्युं करि सीख ॥णापु०॥ चंगी विधि चारित धरी, वधतइ वर भावि । अणसण अंते ऊचरी, चोखइ चिति चावि ॥८॥पु०॥ मरण समाधि मरी करी, सद्गति गयो सोइ । प्रगट चरित पुण्यसार नो, लखिज्यो सब लोइ ।हापु०॥ शांतिनाथ जिन सोलमउ, तसु चरित चउसाल | ए मई तिहां थी उधयं उ, सम्बन्ध विसाल ॥१०॥पु०॥ संवत सोल तिहुत्तरइ,' भर भादव मास । ए अधिकार पूरउ कर्यउ, समयसुन्दर सुखवास ॥११॥पु०॥
॥ इति श्री पुण्यसार चरित्रं संपूर्णम् ॥ ग्रन्थाग्र० ३०१ श्लोक संख्यया ॥ संवत् १७३१ वर्षे चैत्र सुदि ११ दिने ॥ [अभय जैन ग्रन्थालय प्रति नं० ८९/४३२८ ] १-बिहुत्तरइ
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