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श्री पुण्यसार चरित्र चौपई ]
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अथवा अंग तणा आभूषण, ले गयो लाइ न वार जी । व्यसनी कोइ वदीतो वंचक, इणि लिखीये आचार जीं ॥१३॥ मारवणी ढाल मांहे मीठी, दसमी ढाल दयाल जी । कीवी प्रबल कुतुहल काजे, सुणिज्यो सरस रसाल जी || १४ || [सर्वगाथा १७३ ]
॥ दूहा ॥
दया करी देवइ दीयो, करइ जो एहवा काज । पुत्री पूरब कर्म नी, प्रगटी दुःकृत पाज ॥१॥ करत कथा कुमर रली, नवि जाण्यउ थे नाम । अण लाइ हिव अंगजा, किम सरिस्यइ तुझ काम ॥२॥ [ सर्वगाथा १७५ ] ढाल (११) राग --- गउड़ी, आदर जीव क्षमा गुण गुणसुन्दर बोलइ गहगहती, लिख्यो अछइ तिण लेख जी । भीत तइ भाग भरतारइ वाच्यउ मई न विशेष जी ॥ १ ॥ सुणउ तात सुन्दर सोभागी, करम क्रतूत कर्म तणी गति लखइ न कोई, देव करइ ते प्रगट हुयउ प्रभात ततखिण, अक्षर लह्या अनूप जी । वाची नइ वखाण कियो तिणि, चटपट लागी चउप जी ॥३॥ तात ते ततखिण ते सुन्दरि, भाखइ भीभल नयण जी । नगर गोपाचल थी तेही नर, आयो ते इहां गइणि जी ||४|| किणही कारण करम विसेषइ, इहां आयो राति मांहि जी । तुझ दीन्ही परणी नइ ततखिण, वली गयो तिण वाहि जी ॥५॥
अलेख जी ।
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देख जी ||२||
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