________________
चम्पक सेठ चौपई]
[१०१ से वंचनामति सेठि नै, अपभ्राजनानु दुख दीधौ रे। त्रिण्ह वार तिण तो भणी, मूल मारण नु मन कीधौ रे ॥६॥के० महासेन क्षत्री भवै, तैं चंपक कुल-मद कीधौरे। दासी कूख तु ऊपनौ, सहु क्रतूत लहीजै सीधौ रे ॥७॥ के० केवली वचन सुणी करी, चंपक सेठ तौ प्रतिबुद्धो रे। वैरागे मन वालीयौ, हुं लेइस संयम सुद्धो रे॥८॥ के० राग द्वेष रूड़ा नहीं रे, कडुआ वलि करम विपाको रे।। विषय सुख विष सरखा वली, विरुआ जेहवा आको रे।।। के० आडंबर मोट करी, चंपक सेठे चारित लीधो रे। त्रिलोत्तमा साथै थई, सती नारि नो ए ध्रम सीधौ रे ॥१०॥ के० चढते परणामे करी, संयम सूधी परि पाली रे। आराधना अणसण करी, दूषण लागा ते टाली रे ॥ ११ ॥ के० देवलोक थया देवता, तिहां परमाणंद सुख पावै रे। बत्तीस बद्ध नाटिक पड़े, आगै अपछर ते गाव रे ॥१२॥ के० देवलोक ते चवी इण, महाविदेह में आस्यै रे। संसार ना सुख भोगवी, जती थई मोक्ष जास्यै रे ।। १३ ॥ के० अनुकंपा ऊपर कह्यो, चंपक सेठि नौ दृष्टांतो रे। अनुकंपा सहु आदरौ, एहथी छै मुगति एकांतो रे ॥ १४ ॥ के० संवत सोल पंचाणूऔ, मैं जालोर माहे जोड़ी रे। चंपक सेठ नी चौपाई, अंग आलस ऊंघ छोड़ी रे ।। १५॥ के०
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org