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चम्पक सेठ चौपई ]
[६8 अभिमानी नर एहवारे, मरैं न मांडै हाथ रे। तेहनै पिण छानौ दियौ रे, आपणा माणस हाथ रे ॥४॥ म० आठ पहुर उद्घोषणा रे, दीजै नगर मझार रे। अन्न पाणी आवी इहां रे, सहु ल्यौ सत्रकार रे॥५॥ म० मांड्या मोटा मांडवा रे, कीधी टाढी छांह रे। सहु को इहां बैसौ सूऔ रे, जिहां मन माने तांहरे ॥६॥ म० वैद्य बैसाख्या आपणा रे, करै चिकित्सा तेह रे। पग हाथ माथौ प्रमुख सहू रे, दुखती राखै देह रे ॥७॥ म० इण अवसर इक डोकरी रे, आवी सत्तकार रे। अन्न विना सोजौ वल्यौ रे, वाध्यौ रोग विकार रे ॥८॥ म० खाधौ पीधौ तेहनौ रे, जरय नहीं लिगार रे। महासेन नै ऊपनी रे, करुणा चित्त मझार रे॥६।। म० ते तेड़ी घर आपणै रे, वैद्य बोलाव्या वेग रे। सार सश्रूषा साचवै रे, टाल्यौ रोग उदेग रे॥१०॥ म० महासेन घर भारजा रे, उत्तम शील आचार रे। नांमैं ते गुणसुन्दरी रे, ते पिण अति दातार रे॥११॥ म० दीन हीन दुखिया भणी रे, भोजन घे भरपूर रे। सार सश्रूषा पिण करै रे, पूरै लूण कपूर रे॥१२॥ म० पोताने हाथे प्रीसवो रे, पोतानै हाथे पान रे। पोते आपै प्रेमसुं रे, सहु नै अढलक दान रे॥१३॥ म० महासेन क्षत्री दीयौ रे, इम अनुकम्पा दान रे। सगला लोक सुखी थया रे, वाध्यो वसुधा मान रे ॥१४॥म०
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