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चम्पक सेठ चौपई ]
[ ७ ढाल (६) ईडर आंबा आंबिली, एहनी। तिण देसै हिव एकदा रे, पापी पड्यौ दुकालि। बार वरस सीम बापड़ा रे, सीधा लोक कराल ॥१॥ वलि मत पड़ज्यो एहवो दुकाल, जिणे विछोड्या मा बाप बाल । जिणे भागा सबल भूपाल ॥ व०॥ आंकणी ॥ खातां अन्न खूटी गया रे, कीजै कोण प्रकार। भूख सगी नहीं केहनी रे, पेट करै पोकार ॥२॥ व० सगपण तो गिणे को नहीं रे, मित्राई गई मूल। को कदाचि मांगे कदी रे, तौ माथै चढे त्रिसूल ॥३।। व० मान मूंकि बड़े माणसे रे, मांगवा माँडी भीख । ते आप पिण को नहीं रे, दुखीए लीधी दीख ॥४॥ व० केई बईयर मूंकी गया रे, के मूंकी गया बाल । के बाप माँ मूंकी गया रे, कुण पड़े जंजाल ॥५॥ व० परदेशे गया पाधरा रे, सांभल्या जेथ सुकाल । माणस बल विण मूआ रे, मारग मांहि विचाल ॥६॥ व. बापे बेटा बेचीया रे, मांटी बेची बयर । बयरे मांटी मूंकीया रे, अन्न न चै ए वयर ॥७॥ व० गोखे बैठी गोरड़ी रे वीजण ढोलती वाय । पेट नै काजै पदमणी रे, जाचे घर घर जाय ॥८॥ व० जे पंचामृत जीमता रे, खाता द्राख अखोड़। कांटी खायै खोरड़ी रे, के खेजड़ ना छोड़ ॥६॥ व०
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