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[समयसुन्दर रासत्रय
ताजौ हाथे टीपणौ, जन्नोई जपमालो रे। पासै योतिष पुस्तिका, 'समयसुन्दर कहि रसालो रे ॥१२॥ रा०
[सर्व गाथा १०२] ढाल (५) १ नगर सुदरसण अति भलौ,
२ ते मुझ मिच्छामि दुक्कडं। पूछयौ रावण पंडीया, कहि का आगली बात । कलियुग में को छ इस्यौ, मुझनै घालै घात ॥१॥ हुणहारी वात ते हुवै, निश्चै निस्संदेह। कोड़ि उपाय कीधां थकां, थायै निःफल तेह ॥२॥ हु० योतिष जोइ जोसी कहै, अयोध्या ठाम । दशरथ ना बेटा हुस्यै, राम लखमण नाम ॥३॥ हु० मोटा थया तुनै मारस्यै, मति तूं करै रीस। माहरौ वचन मिटै नहीं, ए विसवा वीस ॥४॥ हु० परतखि छै ए पारखे, ते तं करि जोय । तेह नहीं थायै तो तुनै, डर भय नहीं कोइ ॥५॥ हु० कुमरी कुमर तणो हुस्यै, सातमै दिन संग। ते विघटायै तो तुने, राति दिन रली रंग ॥६॥ हु० कहै रावण वात ए किसी, आंखि नै फुरकार। जे मनि चिंतवु ते करू, हुए तूं हुसीयार ॥७॥ हु० जोसी कहै जो झूठौ पडु, तो त्रोडु जिनोई। फाड़ी नांखु टीपणो, करू तिलक न कोई ॥८॥ हु०
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