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श्री समय सुन्दरोपाध्याय कृत
चम्पक सेठ चौपाई
दूहा
प्रतक्ष |
समक्ष ॥ १ ॥
जालोर मांहे जागतौ, पारसनाथ प्रहऊठी नै प्रणमतां, सानिध करे गढ ऊपर गरुड़ निलौ, सोवनगिरि सिणगार । महावीर प्रणमं मुदा, दउलति नौ दातार ॥ २ ॥ मात पिता पण मन धरी, दीधौ जिण अवतार । नाम लेई नै गुरु नमु, दीक्षा न्यांन दातार ॥ ३ ॥ कर जोड़ी प्रणमी करी, कहिस घणुं श्रीकार । चंपक सेठिनी चौपई, अनुकंपा अधिकार ॥ ४ ॥ पांच दान परगट कह्या, सहु जाणै संसार । अभयदान दीजै इहां, सुपात्रदान इहाँ सार ॥ ५ ॥ चारित्र चोखो पालिये, दीजे साधु ने दान | ए बहु दान थकी अधिक, मुगति वधू मान ॥ ६ ॥ अनुकंपा किरिया इहां, दोहिलां दुखीयां दुरभक्ष मांहे दीजिये, मन घर आदर मान ॥ ७ ॥ उचितदान जे आपिये, पासी मन से प्रीति । यथायोग गायै जिके, गुरु नै देवनागीत ॥ ८ ॥ .
दान |
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