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वल्कलचीरी चौपई ]
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पोली पुरुष मांहि पडह फेरड, सुंदरि इम संतोषीयउ, कहिस्य नहीं को पली आव्यउ, देव देखउ दूत आवीयउ ||७|| नृप कहइ तू समझी नहीं, लागी नहि पलि लाजो जी, पणि पूरवजे माहरड़, परिहरयड पलि विण राजो जी । परिहउ पलि विण राज आपणउ, वइरागइ व्रत आदर्य, हूं मूढ माया मांहि खूतो, राग द्वेष करी भयउ । हुं लेउ दीक्षा हिवइ पणि मुक्त, पुत्र अति नान्हो सही, पुत्र नई बइठी पालिजे तु नृप कहइ तूं समझी नहीं ||८|| धीरज धरि कहै धारिणी, हुं होइसि तुम्ह साध्यो जी, कामिनी कंथ साथि कही, ए भोगवो सुत आध्यो जी । ए भोगवो सुत आथि अपणी, लाड कोड सुं लघु वया, परसन्नचंद नइ राजि थापी, राय राणी तापस थया । आविया तापस आश्रमइ ते, वारू कीध विचारिणी, करि कुटी ओटज रह्या कानन, धीरिज धरि कहइ धारिणी || आणइ राणी इंधणी, वनफल फूल विशालो जी, कोमल विमल तरणे करी, सेज साजइ सुकमालो जी । सेज सजइ सुकमाल राणी, इंगुदी तेलइ करी, उटला ऊपरि करइ दीवउ, भगति प्रिउनी मनि धरी । ओटला लिंपइ आणि गोबर, गाइ छइ तिहां वन तणी, वन व्रीहि आणइ आप तापस, आणइ राणी इंधणी ॥१०॥ तपस्या करइ तापस तणी, निरमम नइ निरमायो जी, सूधुं सील पालइ सदा, ध्यान निरंजन ध्यायो जी ।
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