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विहरमान जिनवीसी ॥ श्री सीमन्धर जिन स्तवन ॥
ढाल-रसियानी श्री सीमंधर सुन्दर साहिबा, मन्दरगिरि समधीर सलूणा । श्री श्रेयांस नरेश्वर नन्दन, मुझ हीयड़ानु रे हीर सलूणा ॥१॥ सोवन वरणइ रे दीपइ देहड़ी,
सुमनस सेवित पाय सलूणा । भद्रशाल' लक्षण करि राजतउ,
भेट्यां भव दुःख जाय सलूणा ॥२॥ चन्द्र सूरज ग्रह गण सहु प्रभु तणइ,
चरण सरण करइ नित्य सलूणा। जाणे रे जीत्या आप प्रभा भरइ,
करइ प्रदक्षिणा कृत्य सलूणा ।।३।। मध्य विदेह विजय पुष्कलावती,
नयरी पुण्डरिकिणी सार सलूणा । तिहाँ विचर भविजन मन मोहता,
सत्यकी मातु मल्हार सलूणा ॥४॥ मेरु महीधर परि अविचल रहउ,
मुझ मन एहिज रे देव सलूणा । ज्ञानतिलक गुरु पदकज भमरलउ,
'विनयचन्द्र' करइ सेव सलूणा ||५||
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