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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि
|| श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवनम् ॥ ढाल - ओलूंनी
मुनिसुव्रत मन माहरौ जी, लागौ तुम लगि थेट । पिण तु मींटन मेलवै जी, ए व्रत दुक्कर नेट ॥१॥ जिनेश्वर बणस्यै नहीं इम बात || आंकणी ॥ मुझ स्वभाव छै तामसी जी, रहिन सकइ खिण मात || २ || जि०|| हुँ रागी पिण तँ अछर जी, नीरागी निरधार ।
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नहीं इक म्यान मंत्र जी तीखी दोइ तरवार || जि०||३|| जाणपणउ मंत्र जाणीयउ जी, जिनवर ताहरौ आज । तक उपर आयउ हतो जी, तँ नवि राखी लाज || ४ ||जि०|| जे लोभी तुझ सरिखा जी, वंछित नाप रे अन्त ।
मुझ सरिखा जे लालची जी, लीधां विण न रहंत ||५|| जि०|| एह अणख छै आपणौजी, सदा न चलस्यै रे एम ।
करि मुझ नइ राजी हिवै जी, जिम बाधर बहु प्रेम || ६ || जि०|| तुं मुझ नइ नवि लेखवर जी, देखी सेवक वृन्द । तारा तेज करें नहीं जी, विनयचन्द्र बिण चन्द्र ||७|| जि० ॥
|| श्री नमिनाथ स्तवनम् ॥
ढाल - भाभाजी हो डुंगरिया हरिया हुवा
साहिबा जी हो तुं नमि जिनवर जगधणी,
पुण्य
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सरणागत साधार म्हांरा साहिबा जी । संयोगइ ताहरउ,
मैं दीठउ दीदार म्हां सा० ॥१॥
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