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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि वसोकरण छइ स्यु तुझ पासइ, अथवा मोहनवेलि मoll साच कहो ते अंतर खोली, जिम थायइ रंग रेलि ।। म० ॥ २॥ कहिस्यउ नहीं तउ मइ पिण सुणीयउ, लोक तणइ मुख आम ॥ मोहन रूप समौ नहीं कोई, वसीकरण नउ दाम ॥३ म०॥ एहिज कारण साचउ जाणी, लागौ तुझ सैं नेह । ताहरी मूरति चित्त मां चहुटी, खिण न खिसइ नयणेह ॥४ म०।। पिण फल मुझ नई न थयउ काइ, अमरष आवै तेह । फलदायक तौ तेहिज थायइ, जे गिरुआ गुण गेह ॥ ५ म०॥ वलि विस्मय मन मांहे आणी, मंइ ग्रहियउ सन्तोष । साकर मां कांकर निकसइ ते, साकर नौ नहीं दोष ॥ ६ म० ॥ सुगुण साहिब तूं सुखनउ दाता, निर्मल बुद्धि निधान । 'विनयचन्द्र' कहइ मुझनइ आपौ, मुगतिपुरी नउ दान ।। ७ म०॥
॥ श्री अनंतनाथ स्तवनम् ॥
ढाल-पंथीड़ा नी एक सबल मन में चिन्ता रहै रे,
न मिल्यउ साहिब जीवनप्राण रे । श्वास तणी परि मुझनई सांभरे रे,
जिम चकवी केरइ मन भाण रे ॥१ ए०॥ पिण ते शिवमन्दिर मांहें वसै रे,
कागल मात्र न पहुँचे कोइ रे। प्राणवल्लभ दुर्लभ जिनराजनी रे,
संदेसे ओलग किम होइ रे ॥२ ए०॥
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