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[ १७ ] मदन के माते रंग राते रसिक लोक अपार । बइठि कइ गोख मनई जोखई गावत मेघ-मल्हार ।। ५॥ पंच रंग चोपें अधिक ओपई इन्द्र-धनुष सधीर । बक श्रेणि सोहइ चित्त मोहइ सर सरित के तीर ॥ तहीं करन क्रीड़ा मुखइ बीड़ा चाबती त्रिय जात । केसरी सारी मूल भारी पहिरि कै हर्ष न मात ॥ ६ ॥
श्री स्थूलिभद्र बारहमास
शृंगार आषाढ़ आषाढइ आशा फली, कोशा करइ सिणगारो जी। आवउ थूलिभद्र वालहा, प्रियुड़ा करूं मनोहारो जी ।। मनोहार सार शृंगार-रसमां, अनुभवी थया तरवरा । वेलड़ी वनिता ल्य३ आलिंगन,भूमि भामिनी जलधरा॥
हास्य श्रावण श्रावण हास्य रसई करी, विलसउ प्रतिम प्रेमइ जी। योगी! भोगीनइ घरे, आवण लागा केमइ जी ॥ तउ केम आवै मन सुहावै, वसी प्रमदा प्रोतडी। एम हासी चित विमासी, जोअउ जगति किसी जडी।
करूणा वर्षा झरहरइ पावस मेघ वरसइ, नयण तिम मुख आंसुआँ । तिम मलिन रूपी बाह्य दीसउ, तिम मलिन अंतर हुआ ॥२॥ भादउ कादउ मचि राउ, कलिण कल्या बहु लोको जी। देखी करूणा ऊपजै, चन्द्रकान्ता जिम कोको जी।।
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