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________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई २०१ कोतिल (२) घोड़ा आगलि कर्या रे, सधव धर्या सिर कुंभ ; इण परि (२) राय मिल्यो निज सुत भणी रे, चित थी टलीयौ दंभ ; १२ चि० एहवै (२) ढाल कही इग्यारमी रे, लहीयौ भूपति मान ; उत्तम (२) कीरति थंभ चढावीयौ रे, विनयचन्द्र वरदान ; १३ चि० ॥ दहा ॥ उत्तम नूप मिलीयौ जई, बाप भणी धरि नेह ; मन विकस्यौ तन उल्लस्यो, रमांचित थयौ देह । १ मकरध्वज भूपाल पणि, सुत ऊपरि करि मोह ; अंगइ आलिंगन दीयौ, सखरी वधारी सोह ; २ सासू नै पाए पड़ी, च्यार बहु मद छोड़ि ; दीधी तीण आसीस इम, अविचल वरतो जोड़ि ; ३ प्रभुता देखी पुत्र नी, राजा हुवै खुश्याल ; पुण्य बिना किम पामीय, एल मुलक ए माल ; ४ निज सुत समरथ जाणि नै, पोते थाप्यो पाट ; पंथ लियौ मुनिवर तणौ, जग माहे जस खाट ; ५. ढाल (१२) तंबोलणि नी च्यार राज्य अधिपति हुवो रे, उत्तम नृप गुण गेह; जेहनै सुन्दर कामिनी रे, जसु कंचन वरणी देह ; १ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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