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________________ २०० विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि वांदि नै (२) बैठो सुणिवा देसना रे, .. ____ सदगुरु द्य उपदेश; धरम (२) करो रे भवियण भावसं रे, जेम कट कर्म कलेश; ६ चि० नर भव (२) लहिस्यो फिर दोहिलो रे, करि भव भ्रमण अनेक ; भवजल (२) निधि तरिवानै कारण रे, जैन धरम छै एक ; ७ चि० तेहनो (२) सरणौ हो भवियण आदरो रे, - संयम तप धरि सार; . इक भव (२) अथवा दोइ भव अंतरै रे, वरिस्यौ शिवगति नार; ८ चि० धर्मकथा (२) सुणि संयम प्रह्यो रे, भण्यो शास्त्र सिद्धांत सुजाण ; पालीने (२) चारित्र निरतिचार सुं रे, नृप पहुतो निरवाण : ६ चि० उत्तम (२) कुमर देश वशी करि, आवै निजपुर मांहि ; आवता (२) अनमी राय नमाविया रे, _थयौ आणंद उच्छाह ; १० चि० भूपति (२) सह्यौ सामेलो प्रेम सुँ रे, सिणगार्या गजराज घरि (२) तोरण बांध्या अति भला रे, . घुरे नगारा गाज ; ११ चि० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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