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________________ - १६४ विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि प्राणसनेही चतुर सुजाण, तुझ विण जास्यै जाणे प्राण ; रा० ढील न करिजे गुण-मणि-खाण, वहिलो आवै मूकी माण ; रा० १० उपजावै सुख लही सुख विभूति, मावीत्रांनै तेह सपूत ; रा० सायर नै जिम चन्द्र-प्रकाश, __हरख वधारै परम उल्लास ; रा० ११ सुहणा ही मां ताहरो ध्यान, वाल्हो लागै जेम निधान ; रो० जिण दिन देखिसि ताहरो मुख, तिण दिन थासी अगणित सुख ; रा० १२ वहिवा राज्य धुरानो भार, वृद्ध थया असमर्थ विचार ; रा० इहां आवीयौ पोतानो राज, पालौ संभालौ गृह काज ; रा० १३ घणं किसु कहीयइ वार वार, तुछ चतुर सकल बुद्धि धार ; रा० जो तुं अमारो भक्त कहाय, तौ पाणी पीजे इहां आय ; रा० १४ लेख तणो एहवो समाचार, वांचै वारंवार कुमार; रा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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