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________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई १६९ पाणी मंत्री नइ छांटियउ रे काइ, कुमरी थईय समाधि रे; उठे रे आलस मोडि नै रे काँइ, दूर गई सहु व्याधि रे ; ३ चा० कुमर प्रति नृप ओलख्यौ रे, कांइ ए तो तेहिज कुमार रे; जनम लगै पुत्री भणी रे, कीधो इण उपगार रे; ५ चा० बोल कह्यो ते पालिवारे, कांइ भूपति करै विचार रे; पुत्री माहरी त्रिलोचना रे, कांइ द्य एहनै निरधार रे ; ६ चा० राज्य प्रमुख सहु सूपिने रे, कांइ हिव रहीयै निश्चित रे; इम जाणी तेड़ावी नै रे, कांइ जोसीयड़ो गुणवंत रे ; ७ चा० जोसी नै राजा कहै रे, कांइ परण कुमरी मुझ रे ; दिवस लगन कहि रूवड़ौ रे, कांइ हुं संतोषिस तुझ रे ; ८ चा० जोवइ जोसी टीपणो रे, कांइ दिवस लगन करि ठीक रे; जपै रोजा आगलै रे, कांइ अमुक दिवस सुप्रतीक रे ; ६ चा० अति उच्छव राजा करै रे, कांइ मंगल हेतु तिवार रे; परणावै निज कन्यका रे, कांइ मन मां हरख अपार रे ; १०चा० कर मुकावण अवसरै रे, कांइ अरधो दीधो राज रे; वलि गृह निज पुत्री तणौ रे, कांइ दीधो सुइवा काज रे; ११चा० तिण गृह मां सुख भोगवै रे, कांइ निशदिन स्त्री-भरतार रे; श्री परमेसर ध्यान थी रे, कांइ कुमर लह्यौ जयकार रे; १२ चा० ढाल चवदमी ए कही रे, कांइ पूरण थयो अधिकार रे; सत्गुरु नैं परभाव सुरे, कांइ एह लह्यो पणि पार रे ; १३ चा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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