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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि
॥ दूहा ॥
तिहां क्रीड़ा करतां थक, कुमरी नै तिण वार; डंक दीयौ नागै सबल, करइंज हाहाकार ; तिण वन थी उपाड़ि नै, आणी निज आवास ; नयण बहुं धवला थया, व्यापौ विषनौ पास ; २ तेड्या सगला गारुड़ी, मंत्र तंत्र ना जाण ; झाड़ौ पावै सलिल, पणि निकसै तसु प्राण; ३ राजा फेरा पड़ह, नगर मांहि इण रीति ; मुझ कुमरी साजी करै, द्यं, तेहनै सुख प्रीति ; ४
राज्य अरध मुझ कन्यका, तिण मांहे नहिं झूठ ; इम साँभलि उत्तमकुमर, पटह छव्यौ पर पूठि ; ५
ढाल (१४)
आवउ गरबै रमीयै रूड़ा रांम सुं रे, एहनी
कुमर आवै राय मारगै रे काँइ, साथै नर नारी थाट रे ; चालो नै रे जश्यै कुमरी देखिवा रे || आं० ॥
ए परदेशी जाण छै रे काँइ, जहनो रूडो रूड़ो घाट रे ; १ चा० सगले लोके कुमर नै रे कांइ, आण्यौ भूपति पास रे ; कुमर कहै नृप आगले रे काँइ, इण परि वचन विलास रे २ चा० राज्य अरधउ रे ताहरी कन्यका रे कांइ, मुझ देज्यो महाराय रे ; हुँ कुमरी जीवास् िरे काँइ, करस्युं दाय उपाय रे ; ३ चा०
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