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________________ विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि ते धन लेई सेठ नो रे हाँ, भूप भर्यो भंडार ; सी० तस्कर माहे ले ठव्यो रे हाँ, जिहाँ छै कारागार ; ११ सी० कुमरी नई हिव पुत्रिका रे हाँ, कहि बोलावै राय ; सी० रहि तु माहरा गेह माँ रे हाँ, चितनी चिंत गमाय ; १२ सी० माहरै पुत्री त्रिलोचना रे हां, जीवन प्राण छै तेह ; सी. तिण पासै रहि नानड़ी रे हाँ, दिन दिन वधतइ नेह ; १३ सी० पुत्री बीजी माहरै रे हाँ, तुं हिज थई निरधार ; सी० मिष्ट अन्न पानादिके रे हां, करि कायानी सार ; सी० १४ दीन दुखी नै दान दे रे हां, खबर करावीस तेह; .... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... सी०१४ सील प्रसादै पामिय रे हां, विनयचन्द्र नव निधि ; सी० ए बीजा अधिकारनी रे हां, दशमी ढाल प्रसिद्ध ; सी० १६ ॥ दूहा ।। बहिनी थई त्रिलोचना, वदै परस्पर वान ; सिद्ध थयौ कारज सहु, कुमरी नौ तिण थान ; १ सखियां सुं खेले रमै, करें गीत नै गान ; प्रवर पंच परमेष्टिनौ, धरै निरन्तर ध्यान ; २ पंच रतन परभाव थी, ये दुखीयां नै दान ; सदगुरु वाणी सांभलै, करै पवित्र निज कान ;३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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