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________________ श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई १५६ ___ ढाल (8) चाल वीर वखाणी राणी चेलणा जी, एहनी, वीनती सेठ जी सांभलौ जी, सरस पीयूष समान ; तुझ थकी चित लागी रह्यो जी, लोह चंबक उपमान ; १ ताहरै माहरै प्रीतड़ी जी, आज थी थई रे प्रमाण ; पिण दस दिवस मुझ कंत नी जी, काइक राखीयै काण ; २ निजर नौ नेह जिण सुं हुवै जी, वीछड्यां दुख न खमाय ; तेह सांप्रति किम वीसरै जी, जेहनो जीवन प्राय ; ३ किण इक नगर में जाय नै जी, साख धर राखि नै राय ; मनगमणी रमणी हुस्यु जी, सेवस्युं ताहरा पाय ; ४ जेह काचा हुवै मन तणा जी, बात मानै नहिं साच ; . पिण तुमे सगुण सापुरुष छौ जी, मानज्यो अवचल वाच ; ५ इम सुणी सेठ मनि हरखीयौ जी, परखीयौ स्त्री तणो भाव ; भोडलो एम जाणे नहीं जी, इहां न कोलावन साव ; ६ हिवै रे मनोरथ-मालिका जी, पूरसी बालिका एह; सेठ गयौ निज थानकै जी, चित मां चीतवी तेह ; ७ तिण समै ते वृद्धा कहै जी, राखीयौ तें भलौ सील , जेह थकी भय सहु त्रासवै जी, पामियै शिवपुर लील ; ८ वात अनुकूल लेई करी जी, प्रवहण दीयौ रे वलाइ । नव नवे पंथ ते संचरै जी, द्वीप सनमुख नवि जाय ; 8 पवन रतन में पूजिने जी, अधिक धरी सनमान ; वेलकूलै सहु आविया जी, मोटपल्ली अभिधान ; १० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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