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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपई
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जोरइ पिण हिव ताहरइ सखी, गलि मांहि घालिस बाह; जे मिलवा नै उल्हसै सखी, किसी विमासण ताहि रे; ए जोवण लहिरै जांहि रे, टाढी तरुवर नी छांहि रे; कहियौ आणौ मन मांहि रे, अणबोल्या वणसी नाहि रे; ७ ३० राजकुमर तब इम कहै सखी, स्यानै खोवै लाज ; ताहरइ मन में जे अछै सखी, मोसुन सरइ काज रे; इवड़ी करई केम आवाज रे, तुं सहु देव्यां सिरताज रे ; माहरौ राखीजै माज रे, इतलो हिज दीजे राज रे; ८ ३० परनारी बहिनी अछै सखी, वलीय विशेष मात ; तिण तुझ नै साची कहुँ सखी सो बाते इक बात रे; इण वात नरक मां पात रे, नव लक्ष जीव नो घात रे; दुख सहियै दिन ने राति रे, नवि लहियै खिण सुख सात रे; ६ ३० वईयर बालै रूसणै सखि भाखै देवी वाणि ; सगपण भगनी मात नो सखी, दाखै केम अयाण रे ; माहरो करि वचन प्रमाण रे, जो चाहै घट मां प्राण रे; तु भावै जाणि म जाणि रे, रहिस्यै नहिं काइ काण रे ; १० ३० देवी तब रूठी थकी सखी, काढि खड़ग कहै ताम ; विण जीवी तुं कांइ मरै सखी, करि मूरख ए काम रे ; तुझ नै नवि लागै दाम रे, ए सजल सरस छै ठाम रे ; तुं जे नवि घालै हाम रे, कहि नै किम चलसी आम रे ; ११ ३० सूर अवर दिश ऊगमैं सखी, मेरु डिगै वलि जेम ; सायर मरयादा तजै सखी, पिण नवि चूकं तेम रे,
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