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________________ १२४ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि इम जाणी रिदै गुण संभरै, एहिज वृक्ष सुहामणा सखी, घणा वली फल फूल : तो हिव इण हिज थानके सखी, वसियै करनै सूल रे ; किहां तो न पड़ीजै भूल रे, जिन ध्यान मां रहीयै झूल रे ; करिय गुण पास अमूल रे, जिम न हुवई चित्त डमडूलरे;२३० इहां रहतां कुण जाणसी सखी, एहवो चित्त विमास ; एकण तरुवर ऊपरै सखी, ध्वज बांधी सुविलास रे ; तिहां समरै जिनवर पास रे, अवहड़ मन धरतो आस रे ; कहतो मुखथी जसवास रे, अमृत सम वचन विलासरे ; ३३० तेहज द्वीप निवासनी सखी, देवी देखि कुमार ; मन चिंतइ रंजी थकी सखी, माहरइ प्राण आधार रे ; मिलीयो दुखियां साधार रे, जो आय चढे घर बार रे ; तउ सफल गिणु अवतार रे, थायै मन मांहि करार रे ; ४ ३० हिव आगलि आवी कहै सखी, सुणि मनमोहन बात रे; तुझ सु लागी मोहनी सखी, भेदी साते धात रे , मुझ दाझै खिण खिण गात रे, मुझ सेती न रह्यो जात रे; तुंदिल मां परम सुहात रे, स्यु कहियै बहु अवदात रे ; ५ इ० तुं तौ प्रीतम मानवी सखि, हुँ छु अपछर नारि ; तिहां सुख भोगवतां छतां सखी, करमां अन्य प्रकार रे; संतावै मदन अपार रे, तन वाध्यो मदन विकार रे ! मिलवो तोसुं इकवार रे, मैं कीधो एह विचार रे ; ६ ३० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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