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[ ७ ] गहुँली इसी ग्रन्थ के पृ० ८४ में प्रकाशित है जिसमें आपने आचार्य श्री जिनधर्मसूरि के पट्ट पर श्रीजिनचंद्रसूरि के पाट विराजने का उल्लेख किया है। यह पट्ट महोत्सव बीकानेर के लूणकरणसर में हुआ था अतः इसके बाद आचार्य श्री ने आपके गुरु महाराज को गुजरात में विचरने का आदेश दिया प्रतीत होता है। इस लघु रचना में अपने को कवि ने मुनि विनय चंद्र लिखा है इसके बाद आपने लघु कृतियां अवश्य ही बनाई होगी क्योंकि उत्तमकुमार चरित्र में आपने अपने को कई जगह 'कवि' विशेषण से सम्बोधित किया है। पाटण में रहते आपने बाड़ी पार्श्व स्त० व नारंगपुर पार्श्व स्तवनादि की रचना की। इसके बाद सं० १७५५ का चातुर्मास आपने राजनगर किया
और विजयादशमी के दिन विहरमान वीसी रचकर पूर्ण की। दूसरा चातुर्मास भी आपने राजनगर में ही बिताया था स्थूलिभद्र बारहमासा गा० १३ की रचना राजनगर में हुई । सं० १७५५ भा० १० १० को राजनगर ( अहमदाबाद ) में ११ अंग सझायों की रचना एवं विजयादशमी के दिन चौबीसी की रचना पूर्ण की। इस चातुर्मास के पश्चात् आपने आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरिजी एवं अपने दादा गुरु श्री. हर्षनिधान पाठक व गुरु ज्ञानतिलकादि गुरुजनों के साथ सपरिवार मिती पोषवदी १० के दिन शत्रुजय महातीर्थ की यात्रा की जिसका उल्लेख आपने इसी ग्रन्थ के पृ० ५० में प्रकाशित शत्रुजय यात्रा स्त० गा० २१ में किया है एक और गा० १३ का स्तवन पृ० ५५ में प्रकाशित है।
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