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श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपाई १११ जाणै ते चौसठि कला, निरूपम वचन विलासो रे । चन्द्रवदन मृगलोयणी, गय गजराज उल्हासो रे ॥१७॥व० पालै सील भली परै, धरम करी सुविकासै रे। एम विनयचन्द्र हेज मुं, ढाल प्रथम परकासै रे ॥१८॥व०
॥ दहा ॥ ते सुख विलसै दंपती, विविध परै ससनेह । मास घड़ी सम लेखवै, जिम दोगंधक देह ॥१॥ शुभ स्वप्नै सुत ऊपनौ, राणी उयर मझार। सुख ऊपरि सुख तो लहै, जो तूस करतार ।।२।। ललित लच्छि पुण सुत निपुण, गौरी गजगति गेलि। पुण्य प्रमाणं पामीय, विनयचन्द्र गुण वेलि ।।३।। दिन-दिन डोहला पूरतां, बोल्या पूरा मास । सुत जायौ रलियामणौ, सहुनी पूगी आस ॥४॥ ए अद्भुत प्रगटीयौ, प्रथम हतो जे भूप । दीप थकी दीपक हुवै, ए दृष्टान्त अनूप ॥५॥ राजा अति उच्छवक थकै, जनम महोच्छव कीध । घरि-घरि तोरण बांधीया, दान वली तिहाँ दीध ।।६।। दशऊठण कीधां पछी, उत्तम लक्षण देखि । नाम दीधो सहु साख ले, उत्तमकुमर विशेष ॥७॥
___ ढाल-(२) वींछियानी हां रे लाल तेह कुमर दिन-दिन वधै,
जिम चन्द्रकला सुविसाल रे लाल।
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