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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि गोखै बैठी गौरड़ी, अपछर नै अनुहारौ रे। केलि करै मन मेलि नै, सहियर सुं सुखकारो रे ।।६।। व० जिनमन्दिर रलियामणा, दंड कलश करि सोहै रे । अति ऊँची धज लहलहै, सुरनर ना मन मोहै रे ।।७। व० चौरासी वलि चौहटा, मिलिया बहु जन वृन्दो रे । देश अने परदेश ना, पावै परमाणंदो रे ।।८। व० सरस सरोवर चिहुं गमा, भरीया जल करि पूरो रे। हंस प्रमुख कल्लोल सु, निवसै दुख करि दूरो रे ॥६।। व. वली विशेष तरुवर करी, सोहै वन सश्रीको रे। कोकिल कर टहूकड़ा, रहै पंखी निरभीको रे ॥१०॥व० बारै मास लगै सदा, नील हरी जिहाँ दीसै रे । फल फूले छाइ घणु, हीयड़ी देखी हीसै रे ।।११।।व० राज करै नगरी तणौ, मकरध्वज भूपालो रे। सूरवीर अति साहसी, न्याय नोत सुदयालो रे ।।१२।।व० दुर्जन जे वांका हता, नार कीया ते जेरो रे। जिम मृगपति नै आगलै, न सकै गयवर फेरो रे ।।१३।।व० इन्द्र समोवर जाणीय, रिद्धि करी राजानो रे। गुनह खमें निज प्रजा तणौ, दिन-दिन वधतै वानो रे ॥१४॥व० यत :-उदै अट्टक्कै भूप नहि, पहिल्यां नांही भूप ।
खुंद खमै सो राजबी, निरख सहै सो रूप ।।१५।। तेहनै राणी रूबड़ी, पतिभगती गुण खाणो रे। नामै श्री लखमोवती, इन्द्राणी सम जाणो रे ॥१६॥व०
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