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कविवर विनयचन्द्र विरचित
श्री उत्तमकुमार चरित्र चौपाई
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एकदन्तो महावीर्य्यो, नमोस्तु सरस पाणिने । सिद्धन्ति सर्व कार्याणि त्वं प्रसाद विनायकः ॥ १ ॥ ॐ अक्षर अतुल बल, चिदानन्द चिद्रूप | सकल तत्व संपेखतां, अविचल अलख अनूप ||२|| अजर अमर अविकार निति, ज्योति तणौ जे ठाम | सत्व रूप साराहियै, पूरण वंछित काम ||३॥ जेहनै नाम स्मरण थी, फीटै सगला फंद | मंदमती पंडित हुवै, दूरि टलै दुख दंद | ४ || योगी ध्यावै युक्ति सुं, भक्ति करी भरपूर । संपै तेहने व्यक्ति गुण, शक्ति सहित ससनूर ||५|| मंत्र मुख्य बीजक कह्यो, सार सहित सुविलास । अरिहंतादिक पंच नौ, अन्तर जास निवास || ६ ||
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अभ्र मांहि जिम थ्रू अडिग, शेषनाग पाताल । मृत्युलोक मां मेरु जिम, तिम ए वरण विसाल ||७|| ते अक्षर तो छै वलू, मन पिण आगेवाण । सरसति माता आपजे, मुझ नै अमृत वाणि ॥८॥ श्रीजिनकुशलसुरिंद गुरु, पूरौ मुझ भन आस । अंतरजामी जाणि नै, करीयै निज अरुदास || ||
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