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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि
आश्रव द्वार पाँच इहाँ आण्यां, पांचे संवर द्वारा । महामंत्र वाणी मां लहीयर, लबधि भेद सुखकारा ||४|| To सुक्खंध एक दशमइ अंगइ, पणयालीस अज्झयणा | पणयालीस उद्देश वलीपद, सहस संख्यात नी रयणा ||५|| जे नर सूत्र सुणइ नहि काने, केवल पोषड् काया । माया मांहि रहर लपटाणा, ते नर इम ही जाया ||६||०|| सूत्र मांहि तर मार्ग दोइ छइ, निश्चय नइ व्यवहारा । 'विनयचन्द्र' कहइ ते आदरीयइ, तजिमद मदन विकारा ||७|| आ० ॥ इतिश्री प्रश्न व्याकरण स्वाध्यायः ॥
(११) श्रीविपाकसूत्र सज्झाय
ढाल -तार करतार संसार सागर थकी, एहनी सुणउ रे विपाक श्रुत अंग इग्यारमउ,
तजउ विकथा वृथा जे अनेरी । ललित उवंग जस प्रवर पुप्फचूलिका,
मूलिका पाप आतंक केरी ॥ १ ॥० ॥
अशुभ किंपाक सम दुकृत फल भोगवी,
नरक मां गरक जे थयां प्राणी ।
सुकृत फल भोगवी स्वर्ग मां जे गया,
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तास वक्तव्यता इहाँ आणी ||२||०||
दो श्रुतखंध नइ वीस अध्ययन वलि,
वीस उद्देस इहाँ जिन प्रयुं जइ ।
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