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________________ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि जम्बूदीव पन्नती उपांग छइ एहनु जी, इण माहे जिनपूजा नी विधि जोर हो ।म्हां। अर्चक सुणि परम शांतरस अनुभवइ जी, . चर्चक सुणि करइ सभां मां सोर हो ।म्हांला२। नगर उद्यान चैत्य वनखंड सोहामणा जी, ...... समोशरण राजा ना मात नई तात हो ।म्हां० धर्माचारिज धर्मकथा तिहाँ दाखवी जी, इहलोक परलोक मृद्धि विशेष सुहात हो ।म्हा०।३। भोग परित्याग प्रव्रज्या पर्यवा जी, . सूत्र परिग्रह वारू तप उपधान हो ।म्हां। संलेहण पचखाण पादपोपगमनता जी, ___ स्वर्गगमन शुभकुल उतपत्ति प्रधान हो ।म्हां०।४। बोधिलाभ वलि तंत ते अंत क्रिया कही जी, धर्मकथा ना दोइ अछइ श्रुतखंध हो म्हा०। पहिला ना उगणीस अध्ययन ते आज छइ जी, बीजा ना दस वर्ग महा अनुबंध हो |म्हा०५॥ उंठ कोडि तिहां सबल कथानक भाखीयाजी, भाख्या वलि उगणतीस उद्देस हो ॥मा०॥ संख्याता हजार भला पद एहना जी, . एह थकी जायइ कुमति किलेस हो ॥६ मां०॥ विनय करै जे गुरु नो बहु परइजी, .... तेहनइ श्रुत सुणतां बहु फल होइ हो |मां०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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