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ग्यारह अंग सज्झाय लोकालोक स्वरूप नी वर्णना रे,
विवाहपन्नती अधिक प्रमाण रे॥४॥५०॥ करियइ पूजा अनइ प्रभावना रे,
धरियइ सुद्गुरु ऊपरि राग रे। सुणियइ सूत्र भगवती रंग सुं रे,
तउ होइ भवसायर नुं ताग रे ॥१०॥ गौतम नामइ नाणुं मुकीयइ रे,
सम्यग् ज्ञान उदय होइ जेम रे। कीजइ साधु तथा साहमी तणी रे,
भगति जुगति मन आणी प्रेम रे ॥६॥०॥ इण परि एह सूत्र आराधतां रे,
इण भवि सीझ३ वंछित काज रे। परभवि विनयचन्द्र कहइ ते लहइ रे,
मोहन मुगतिपुरी नउ राज रे ||पं०॥ इतिश्री भगवती सूत्र स्वाध्यायः।
(६) श्री ज्ञातासूत्र सज्झाय ढाल-कित लाख लागा राजाजी रे मालीयइ जी एहनी । छठुड अंग ते ज्ञातासूत्र बखाणियइजी,
जेहना छइ अर्थ अधिक उद्दण्ड हो । म्हारी सुणिज्यौ धरि नेह सिद्धान्त नी बातड़ी जी। श्रवणे सुणतां गाढउ रस ऊपजइ जी,
मधुरता तर्जित जिण मधुखंड हो ।शम्हांका।
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