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विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि
॥श्री नारिंगपुर पार्श्वनाथ स्तवनम् ॥ ढाल-आठ टकइ कंकण लीयउ री नणदी थिरकि रहयउ मोरी बांह,
कंकणउ मोल लीयउ एहनी देशी सुनिजर ताहरी देखिनइ रे जिनजी सफल थई मुझ आस । मोरउ मन मोहि राउ, हारे जैसे मृग मधुर ध्वनि गीत ।मो०॥ तुमाहरइ मन मई वस्यो रे, जि० श्री नारंगपुर पास ॥१॥ तुझ मुख कमल निहालिवा रे, जि० रहती सबल उमेद ।।मो०॥ ते तुझ नई मिलियाँ पछी रे जि० भागउ मन रउ भेद ॥मो०॥२॥ हुँ सेवक छु ताहरउ रे जि० तु साहिब सुप्रमाण । मो०॥ तें मन हेस्यो माहरउ रे जि० भावइ तउ जाण म जाण ।।मो॥३॥ खिण इक जउ तुझ नइ तजुरे जि० तउ उपजै अंदोह ।।मो०।। धरती पिण फाटइ हियो रे जि० पाणी तणय बिछोह ।मो०॥४॥ ताहरी सूरति नउ सदा रे जि० धरिस्यु निशि दिन ध्यान मो०। जिण तिण मां मन घालतां रे जि० न रहै माहरउ मान ।मो०।। चरण न मेल्हुँ ताहरा रे जि० रहिस्यु केडइ लागि ॥मो०।। फल प्रापति पिण पामस्युरे जि० जेह लिखी छइ भागि ।मो०।६। मई तउ कीधउ मो दिसा रे जि० ताहरइ ऊपरि मोह ॥मो०॥ विनयचन्द्र कहै माहरी रे जि. सगली तुम ने सोह ॥मो०॥७॥
रहनेमि राजीमति स्वाध्याय
राग-हींडोल शिवादेवी नंदन चरण वंदन चली राजुल नारि । प्रियु संगि रागी सती सागी चलत लागी वार ।।
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