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विनयचन्द्रकृति कुसुमाञ्जलि परमपुरुष श्री पास |प०। प्रणम्याँ तन मन उल्लसइ हे लो। पूरइ हे सेवक आस पूछ। 'विनयचन्द्र' हियड़े वस्या हे लो॥७॥ . ॥ श्री स्वाभाविक पार्श्वनाथ स्तवनम् ।।
ढाल-हाडानी सुणि माहरी अरदास रे मन मोहनगारा, म्हारा प्राण पियारा। आस पूरो रे वाल्हा पास, निपट न करि नीरास म० सास तणी परि तु मुंभ सांभरे रे ॥१॥ माहरइ हुँ हिज सइण रे ।म०।
ताहरी मूरति मननी मोहनी रे। निरखि ठरइ मुझ नयण रे |म०)
___हियडौ हेजालू विकसै माहरो रे ॥२॥ तुझ थी लागौ रंग रे ।म०।
लइणा दइणा नो कारण एह छरे। खिण न पड़े मन भंग रे ।म०।
संग न छोडं जिनजी ताहरउ रे ।।३।। ताहरौ मन नीराग रे ।म०
राग घणौ रे मन में मोहरै रे। ते किम पहुँचइ लाग रे ।म०।
एक हाथइ रे ताली नवि पड़इ रे ॥४॥ वलि एहवउ नहिं कोइ रे ।म।
जेहनइ कहियइ रे मननी वातड़ी रे ।
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