SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री पार्श्वनाथ गीतम् ७३ दूषण ने पड्यउ पांतरै जी, तेह बगसौ महाराज। बांह जउ दीजीय मो भणी जी, आज तोहिज रहै लाज ||२|| एक पखउ मई तो जाणीयो जी, स्वामि सेवक व्यवहार । धवलड़ौ दूध जिम देखिनैजी, हुं रच्यो सरल अनुहार ॥३॥ नेह कीजे निज स्वारथे जी, ते इहां को नहीं लाह। तुं निरंजण सही माहरी जी, तिल भर को नहिं चाह ॥४॥ पग भरि कवण ऊभौ रहे जी, जिहाँ नहिं लाव नै साव । कहै 'विनयचन्द्र' गिरुवाहुज्योजी, हरस द्यौ देखिने दाव ॥५॥ ॥श्री पार्श्वनाथ गीतम् ॥ ढाल-सरवर खारो हे नीर स० नयणां रो पाणी लागणौ हेलो एहनी देशी तूठा हे पास जिणंद तू०। बूठा हे अमृत मेहड़ा हे लो बू रूठा हे पातक वृन्द ।रू०। पूठा हे पग दे बापड़ा हे लो |पू० ॥१॥ साचउ हे धरम सनेह ।सा०ा लागउ हे प्रभु सँ माहरइ हे लो। मुझ इकतारी हे एह ।मु०। नेह कियाँ बिन किम सरइ हे लो॥२॥ समकित जाग्यउ हे जोर ।स०। अशुभ करम दूरइ गया हे लो। कुमति न चांपइ हे कोर ।कुछ। संयम जोग वशिथया हे लो ॥३॥ प्रगट्यो हे ध्यान थी ज्ञान प्र०ा उदय थयउ अनुभव तणो हे लो। आतम भाव प्रधान ।आ०। सहज संतोष वध्यउ घणो हे लो ॥४॥ सहुमाँ प्रभुनो हे अंश ।सा जेम घृतादिक खोर मां हे लो। झीलइ हे मुझ मन हँस ।झी०। प्रभु गुण निर्भल नीर मां हे लो॥५॥ जगव्यापी जिनराज ।जा तित्थंकर तेवीसमउ हे लो। हित सुख केरइ हे काज हि चरणकमल प्रभुना नमउ हे लो।।६।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy