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________________ ६६ विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि वयणे नेह वधइ नहीं रे लो, नयणे वाधर नेह रे सनेही । नेह तेह स्या काम नो रे लो, अमिलियां र है तेह रे सनेही ||१०||श्री० || जिम तिम मुझ नइ तेड़नइ रे लो, करि माहरउ निरवाह रे सनेही । 'विनयचन्द्र' प्रभु सानिधर रे लो. नहीं खलनी परवाह रे सनेही ||११|| श्री०॥ || श्री पार्श्वनाथ वृहत्स्तवनम् ॥ ढाल - देहु देहु नणद हठीली, एहनी श्री पास जिनेसर स्वामी, तुं वाहलो अन्तरजामी रे । जिनदेव तुं जयकारी, तुझ सुरति लागे प्यारी रे ॥ साहिब सुन वीनति मोरी, बलिहारी जाउ तोरी रे || १|| तुं गुण अनन्त करि गाजर, तुझ रूप अनोपम राजइ रे । सुन्दर तुझ मुख नउ मटकौ, वारू लोयण नउ लटकउ रे ||२|| तु धर्म तण छ धोरी, माहरउ मन लीधउ चोरी रे तुझ दीठां विण न सुहावर, मुझ जीव असाता पावइ रे || ३ || भरि निजर जोऊँ जब तुझनइ, तब आनंद उपजइ मुझनइ रे । चित्त मांहि हुवइ रंग रोल, जाणे स्वयंभूरमण कल्लोल रे || ४ || मई देव घणा ही दीठा, मुख मीठा हीयड़ा धीठा रे । मिलियउ नहीं हियउ कोई, त्यारइ मँक्या सह जोई रे ||५|| 1 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003819
Book TitleVinaychandra kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1962
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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