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नेमि राजिमती बारहमासा सुख चाहता जीव नइ रे लो,
__मत कोई लागू थाय रे सनेही ॥४ श्री०।। केलवि कल काइ हिवै रे लो,
जिम आयु तुझ पास रे सनेही। आवी नइ तुझ रंझिस्यु रे लो,
खिजमति करस्युं खास रे सनेही ॥५ श्री०॥ मत जाणौ मोनइ लालची रे लो,
दिल माहरउ दरियाव रे सनेही। बीजउ कंइ माहरइ नहीं रे लो,
चाहइ आदर भाव रे सनेही॥६ श्री०॥ महिर बिना साहिब किसउ रे लो,
लहिर बिना स्यउ वाय रे सनेही। सहिर बिना स्यउ राजवी रे लो,
इम कलि मांहि कहाइ रे सनेही ॥७ श्री०॥ कां न करउ मुझ ऊपरइ रे लो,
कूरम दृष्टि सुदृष्टि रे सनेही । जेथी ततखिण संपजइ रे लो,
शान्त सुधारस वृष्टि रे सनेही ॥८॥श्री०।। वृक्ष्यादिक नई सेवतां रे लो,
पूगइ मननी आस रे सनेही । तउ साहिब तुझ सारिखउ रे लो,
किम राखइ नीरास रे सनेही ॥६॥श्री०॥
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