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नेमि राजिमती बारहमासा.
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चंबेल चोआ करु मरदन, दरद होइ असमान । प्रियु पोष मास शरीर शोषत, हूं भई हइरान ||आoll चल चीत प्रीतम सीत कीनी, सोउ सालत साल। इक तनक मोरी भनक सुनिक, छिनक करौ निहाल | विरह सौं फाटत हृदय मेरौ, दुख घनेरो होहि । यह माह मास उलास धरि कै, सेझ को सुख जोहि ||८|आ०॥ सारिखी जोरी रमत होरी, लेत गोरी संग । रंभित झमाल धमाल गावत, सब बनावत रंग ।। डफ ताल चंग मृदंग वावत, 'उडावतहिं गुलाल । इह मास फागुन सगुन खेलउ, निरखि मोहि बेहाल ||आ०|| जहाँ गत विपल्लव अति सपल्लव, भये झंखरझार । अरविंद निर्मल विपुल विकसित, हसत वन श्रीकार ।। तहाँ बहुल परिमल लीन अलिकुल मिलि करत गुंजार। यह मास चैत सचेत भई, देत मनमथ मार |१०|आ०| लुलि लुंब झुब कदंब होवत, अंब के चिहुँ फेर । तरु डार धूजत मधुर कूजत, कोकिला तिहिं बेर ।। अभिलाष द्राखन कउ समानत, मउज मानत लोग। वैशाख मई वयशाख वउलत, कहा पीछई भोग ।।११।।आ०।। रति केलि कंदल दवानल सउ, प्रबल ताप प्रसंग। अति अरुन किरन कठोर लागत, नांहि तागत अंग ।। चन्दन प्रमुख झखि झखि लगाउं, धख जगावं साय । मन लाय ज्येठ मई ज्येठं मेरे, ल्याउ नेमि मनाय । १२। 'आ०॥
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