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अभिनन्दन जिन गीतम् . ॥ श्री अभिनन्दन जिन गीतम् ॥
ढाल-प्रोहितियानी पंथीड़ा अंदेसउ मिटस्यै जे दिनइ रे,
ते तउ मुझ नइ आज बताइ रे। प्रभु अभिनन्दन नइ मिलवा तणउ रे,
अलजो ए मनडै न खमाइ रे ।।१।। पं०॥ ते शिवपुर वासउ बसे रे,
हुँ तउ मानव गण मई जोय रे। प्राणवल्लभ दुर्लभ जिनराज नी रे,
कहि नै सेवा किण विधि होय रे॥२॥५०॥ पांख हुवै तउ ऊडि नै रे, .
जाइ मिलीजै तेह सुं नेट रे। ओलग कीजइ बेकर जोडि नै रे,
. स्युं वलि काइ भलेरी भेट रे ॥३।। पं० ॥ इण कलि संमुख नवि मिलइ रे,
वलि पहुँचइ नहीं कागल मात रे। दूर थकी जे रंग इसी परि रे,
राखिस ए पटोलै भाति रे॥४॥ पं०॥ परम पुरुष पांहर पखै रे,
. चाढे वंछित कवण प्रमाण रे। गुण आगलि साची जाणै सही रे, .
जगगुरू 'विनयचन्द्र' नी वाणि रे ॥४||पं०।।
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