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विनयचन्द्र कृति कुसुमाञ्जलि ॥ श्री अजितवीर्य जिनस्तवन ।
ढाल-वीरवखाणी राणी चेलणा अजितवीरज जिन बीसमा जी,
विसरइ नहीं थारउ नेह । अलख रूपी तुमे चित लिख्याजी,
___ आ भव पर भव जेह ॥१॥ अ०॥ प्रभु तुमे अकल कलना करी जी,
अगम्य कीधा तुमे गम्य । अभक्ष्य ते भक्ष्य प्रभु आचर्या जी, .
आदर्या रम्य अरम्य ॥२॥ अ०॥ अपेय जे पामर लोकनइ जी,
तेह कीधैं तुम्हे पेय । अंतरगति इम भावतां जी,
तुम्हे अनुपम उपमेय ।।३।। अ० अकल षट दव्य निज रूप थी, .
अगम्य जे सिद्ध न ठाम | अभक्ष्य जे काल अपेय नइ जी,
सहज अनुभव सुधा नाम ॥४॥ अ०॥ नरपति राजपाल सुंदरु जी
मात कनीनिका जास । स्वस्तिक लंछनइ वंदियइ जी,
कवि विनयचन्द्र' सुविलास ॥५॥ अ०॥
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