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(४६) प्रेरणा
चै० सु० १५।२०२० ता० २७-४-६४ अहो ज्ञानावतार गुरुराज ना हो लाल, सौ केड़ कसी सज्जथावरे,
आत्म स्वरूप आराधवा ; आजड़ स्वरूप जंजाल मां हो लाल, केम अटकी रह्या छो सावरे०
१आ० आ काले कंटाला मार्गने हो लाल, कर्यु स्वच्छ कृपालु रावरे० आ० चाली चिह्नो करया संकेत ना हो लाल, महा भाग्ये मल्योए दावरे०
२ आ० छो बीजा उन्मार्गे चालता हो लाल, अनेमाने सन्मार्ग प्रभाव रे०आ तेथी डगिए नहिं राजमार्ग थी हो लाल, चालो चालो महानुभाव
रे आ०३ छेमोक्ष ने मोक्ष उपाय छ हो लाल, आ काले ए श्रद्धा जमाव रे आ० एक निष्ठा थी ए पथ चालता हो लाल, सधे सहजानंद स्वभाव रे
आ० ४ (४७) भक्ति-वृष्टि पद
२६-५.६ वशाखी पूनम रात्रिए चढ्य मेघाडंबर चिदाकाश रे
भक्तिनी वृष्टि थइ रे... वृष्टि थई मिथ्यादृष्टि गई, ला अंतर् दृष्टि प्रकाश रे.. भ० १ आत्म प्रदेश-प्रदेश मां अति, चमके बिजली चौपास रे.. भ० अनहद वाजा वागी रह्या, गाजे संगीत सुर सरी प्रास रे...भ० २ नाचे दहुका करे भक्त-मयूरो, अंगे न माय उल्लास रे...भ०
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