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हुँ. पण आन्यो आप दरबारे, नाथ दासत्व ने काजकृ० ६ धुं तो अधमाधम तो पण आपनों, शरणागत महाराज• • •कृ० रिद्धि सिद्धि नहीं मांगुं तारक ! हूं, ए तो जड़ादि अखाजकृट सेवना फल नहिं मांगें तारक हूँ, मांगें न इन्द्र नर ताज कृ० ६ fasate भक्ति मांग्ये स्वामी थी, सेवक ने शी लाज कृ० १० छे वशवती भक्ति परा ए, सहजानंद समाज कृ० ११ (४४) गुरु महिमा पद
जे शिर परमकृपालुदेव, तेने शुं करसे संसार समरथ साहिब शरण लेतां, शो जड़ कर्म नो भार । जड निमित्त रागादि विभावो, टके न वण आधार | जे० | ११ क्षण स्थायी तज-जले बिखरतां, लागे केटली वार । त्रिविध करम बाल मुक्त थवासे, सहजानंद पद सार । जे०/२० (४५) अनुभव पद
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सफल थयुं भव मारू' हो कृपालु देव ! पामी शरण तमारू हो कृपालु देव ! कलिकाले आ जम्बू भरते, देह धर्यो निज-पर-हित शरते ; टाल्यु मोह अंधारू हो कृपालु० १
धर्म ढोंग ने दूर हटावी, आत्म धर्म नी ज्योत जगावी करयुं 'चेतन जड़ न्यारू हो कृपालु० २ सम्यग् दर्शन - ज्ञान- रमणता, त्रिविध कर्म नी टाली ममता सहजानंद लघु प्यारू हो कृपालु० ३
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